गुरु शिष्य का मिलाप
इसी दौरान चर्चगेट के नजदीक पारसीयों के कुएँ पर ही साटम महाराज जी बैठे थे, तभी बाबा रेहमान वहॉं आ गये. तभी बाबाने महाराजजी को कहा जो प्रकाश मेरे बापने मुझे दिखाया, वो तुझे दिखाने के लिए मुझे इधर मेरे बापने भेजा है. यह कहकर उन्होंने अपने शरीर से ईश्र्वरी तेज महाराजजी के शरीर में छोडा और वह चले गये. उसके बाद महाराजजी डोंगरी में बाबा के दर्शन के लिए जाते थे. आज जहॉंपर डोंगरी पुलिस थाना है, उसके बाजू में पहाडी पर तभी बाबाकी बैठक होती थी, उस बैठक में महाराजजी जाते थे. कभी कभी अपने लाडले शिष्य को मिलने के लिए बाबा भी जाते थे. बाबा से दिक्षा पाने के बाद महाराजजी तपश्चर्या करने के लिए पूरे भारत देश में भ्रमण करने के लिए निकल पडे. उन्होंने अपना कार्य शुरु किया, कार्य करते करते दाणोली में ठहर गयें. ऐसे ही एक दिन दाणोली में साटम महाराज बहुत रोने लगे तभी भक्तगणोंने उनसे रोने का कारण पुछने पर उन्होंने बताया आज मेरा गुरु चला गया. उसके बाद कुछही देर में रेहमान बाबाकी निर्वाण की खबर बम्बई से वहॉं पहुंची. 27 दिसंबर 1916 में उनका निर्वाण हुआ. उनकी उम्र अंदाजे 125 वर्ष की थी.
बाबा की दर्गाह (तांडेल स्ट्रीट, छत्री सारंग मोहल्ला, डोंगरी) और बैठक (डोंगरी पुलिस थाना)
बाबा की इच्छा के अनुसार छत्री सारंग मोहल्ला (जहॉं पर बाबा अक्सर बैठते थे) वहीं पर उनकी कब्र बनायी गयी और वहींपर उन्हें दफनाया गया. उनकी चीजों को भी साथही रखा गया. उसके बाद वहीं पर उनकी दर्गाह बनायी गई. आज के डोंगरी पुलिस थाने के बाजूंमे पहले पहाडी हुआ करती थी. उस पहाडी पर पेड के निचे एक पत्थर पर बाबा बैठते थे, और नमाज भी पढते थे. उनके निर्वाण के बाद 1923 में डोंगरी पुलिस थानेकी जगह बढाने के इरादे से पहाडी तुडवाने का काम शुरू हुआ. पूरी पहाडी तोडी गयी लेकीन जहॉंपर बाबा बैठते थे वह पत्थर टूट नही रहा था. इसलिए सुरंग लगाए गये, फिर भी वह पत्थर टूटने के बजाय उसमें से खून निकलने लगा. वह खून जॉंच के लिए भेजा गया तब वह मनुष्य का खून होने का प्रमाण मिला. फिर पुलिस आयुक्त ने बाबा की दर्गाह पर जाकर मॉफी मांगी, तभी खून आना बंद हुआ. उस सुरंग के निशान आज भी मौजूद है. उसके बाद वहांपर दिवार बनाकर वह जगह एक पवित्र स्थल के रूप में जानी जाती है.
दर्गाह में उर्दू तारीख 1 जमादिल अव्वल हरसाल 10 दिन बाबा का उरूस (मेला) होता है. इन दिनों में रोज 10 दिन संदल जुलूस निकलते है और 5 वे दिन डोंगरी पुलिस थाने के बाबाकी बैठक को संदल जुलूस का सम्मान दिया जाता है. कव्वाली का कार्यक्रम होता है. 10 वे दिन समारोप कार्यक्रम होता है. बाबा का नियाज गोरगरीब और भक्तोंमे बांट दिया जाता है.
बाबा के भक्तों में मुस्लिम के साथ हिंदू भी भक्त बहुत थे और आज भी है. बाबा शरीर से मौजूद थे तभी जितने चमत्कार उन्होंने करके दिखाए उतनेही चमत्कार उनके शरीर छोडकर जानेपर अब भी हो रहे है. बाबा की कृपा आज भी भक्तोंपर हो रही है और निरंतर ऐसीही होती रहेगी.